प्रवाल एवं प्रवाल भित्तियां


  • प्रवाल (मूंगा) सागरों या महासागरों में विशेष प्रकार की रचना करने वाले एकमात्र जीव हैं, जो मुख्यतः उष्ण कटिबन्धीय सागरों में पाये जाते हैं।
  • प्रवाल का शरीर अत्यन्त कोमल डोलोमाइट तथा चूने से बना होता है जो स्पंज के समान दिखता है।
  • ये सदैव समूह में रहते हैं तथा अपने चारों ओर चूने की खोल का निर्माण करते हैं।
  • जब प्रवाल मरने लगते हैं तो उनकी खोल के ऊपर दूसरा प्रवाल अपनी खोल का निर्माण करने लगते हैं। इस प्रक्रिया से लम्बे समय में एक विशाल भित्ति का निर्माण हो जाता है, जिसे प्रवाल-भित्ति कहते हैं।
  • प्रवाल जल के बाहर जीवित नहीं रह सकते, इसलिए भित्ति का निर्माण या तो समुद्र तल के नीचे या समुद्र तल तक ही पाया जाता है।
  • प्रवाल का भोज्य पदार्थ चूना है।

प्रवाल की उत्पत्ति तथा विकास के लिए अवस्थाएं:-
  • प्रवाल सदैव उच्च तापमान में ही बढ़ते हैं। इस कारण उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र इनके लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं।
  • प्रवाल सागरों में 250 फीट तक की गहराई तक आसानी से पनपता है।
  • प्रवालों के लिए औसत सागरीय लवणता 27 प्रतिशत से 40 प्रतिशत आवश्यक है, अत्यधिक लवणता के लिए हानिकारक होती है।
  • जल अवसाद मुक्त होना चाहिए किन्तु पूर्ण स्वच्छ जल भी इनके लिए हानिकारक होता है।
  • प्रवाल के लिए तलछट युक्त स्वच्छ जल होना चाहिए। कम मात्रा में धीरे-धीरे तलछट का सागरों में पहुंचना प्रवाल को हानि पहुंचाता है, इसलिए ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर अनेक नदियों द्वारा मुहाने बनाने के बावजूद वृहत् प्रवाल भित्ति निर्मित हो सकी है।
  • सागरीय धाराएं एवं तरंगों की प्रवाल भित्ति के आकार निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इनके माध्यम से प्रवालों को भोजन की प्राप्ति भी होती है।
  • प्रवाल जीवों के विकास के लिए अन्तः महासागरीय चबूतरे महत्त्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि ये चबूतरे प्रवालों के घरौंदे बनाने में अधिक सहायक होते हैं।
परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रश्न पढ़ें:-

प्रवाल भित्ति के प्रकार
तटीय प्रवाल भित्ति:

  • इस प्रकार की प्रवाल भित्तियां फ्लोरिडा, मलेशिया द्वीप, अण्डमान-निकोबार द्वीप के निकट पायी जाती है।

अवरोधक प्रवाल:
  • विश्व की सबसे बड़ी अवरोधक प्रवाल भित्ति ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट के सहारे ग्रेट बैरियर रीफ है। इसके अतिरिक्त न्यू कैलीडोनियन बैरियर रीफ।

वलयाकार प्रवाल भित्ति या एटॉल:
  • इसकी आकृति मुद्रिका या घोड़े की नाल की तरह होती है। 
  • इण्डोनेशिया सागर, चीन सागर, ऑस्ट्रेलिया सागर, एण्टीलीज सागर में एटॉल बहुलता से मिलते हैं।





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