शक्ति और बुद्धि, पूंजी और बुद्धि मानव के शोषण के बड़े कारक है



  • शक्ति का शौर्य और पूंजी का पैसा, मानव को दो वर्गों में बांटता है - शोषक और शोषित।
  • फिर चाहे कोई विचारधारा यह दावा क्यूं न करें कि वे बिना वर्ग के समाज चाहती है, ऐसा संभव नहीं है। 
  • लघु संसद का सच एक विश्लेषण पेश करता है आपके सामने।
दोस्तों!
  • हमारा मानव होना ही हमारे पतन का बड़ा कारण है। हमने इतिहास पढ़ा है, हां किसी न कक्षा 10वीं तक पढ़ा होगा, तो किसी ने डॉक्टरेट की उपाधि भी धारण की होगी। उसने यह भी पढ़ा होगा कि विजेता अपना इतिहास खुद अपने हिसाब से लिखवाता है।
  • उस इतिहास को हमें शायद इसलिए याद रखना चाहिए कि उस दौरान कई अच्छे शासकों ने अपनी प्रजा का पुत्रवत पाला है और कुछ ने अन्यायी राजा का खिताब भी पाया है।
  • हमें इस संदर्भ में इतिहास को जरूर याद रखना चाहिए कि हम उन गलतियों को पुनः न दोहराएं जो हमारे पूर्वजों ने की थी। इतिहास हमें यह सीखाता हैं कि देख पतन दोनों विरोधियों का ही होता है क्योंकि कोई अपना प्रमुख सेनानायक खो देता है तो कोई अपनी सेना के साथ राज्य।
  • यह नहीं कि विजेता कुछ नहीं खोता, बल्कि वह जीते हुए लोगों पर कभी पूर्ण रूप से अधिकार नहीं जमा सकता है। यह इसलिए होता है कि पूर्व के राजा द्वारा उन्हें एक अच्छा जीवन दिया गया था उसने आकर उन्हें लूटा और फिर उन्हें अपनी दया का पात्र बनाना चाहता है, जो कभी संभव नहीं है।
  • शक्ति का शौर्य अपना विस्तार चाहता है वैसे ही पूंजी का पैसा भी विस्तार चाहता है। फिर चाहे उसे किसी का भी सुखमय जीवन बर्बाद क्यूं न करना पड़े।
  • शक्ति ने पूर्व काल के मानव समाज में विसंगतियां उत्पन्न की थी वैसी ही विसंगतियां वर्तमान में पूंजीपति अपनी निजी स्वार्थी अभिलाषा को बढ़ाने में पूरे जोर-शोर से कर रहे हैं।

  • कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है... जानी
  • ये राजा-महाराजों का ही दोष नहीं है यह दोष तो आज भी हमें देखने को मिल जाता है।
  • राज अधिकारी पहले भी बिकते थे और आज भी बिकते हैं। लोग अक्सर कहते हैं नौकरी से तो सिर्फ पेट पूजा ही होती है, अगर ऐशो आराम करना है तो रिश्वत तो लेनी पड़ेगी।
  • और हां सच भी है हमारी सरकार चाहे देश की हो या राज्यों की। वे अपनी अधिकारी से यह नहीं भरवाती कि आप पद ग्रहण कर रहे हैं तब आपके पास कितनी सम्पत्ति है। बाद में जब अधिकारी रिटायर होता है तब कि क्या सम्पत्ति है। उसका कोई ब्यौरा नहीं होता है। 
  • यह सच एक आमजन या उसके नजदीक रहने वाला जानता है पर वह भी कुछ नहीं कर सकता क्योंकि उसकी यदि वह शिकायत करे तो उसकी खैर नहीं। 
  • विश्वास किस पर करें, ताकत बड़ी कुत्ती चीज है वो अपने शौर्य पर आ जाये तो बड़े-बड़ों को बर्बाद कर देती है। बस यह डर उन्हें मौन बना देता है क्योंकि उन्होंने सुना है उस अधिकारी से मैंने अपने सफेद बाल ऐसे ही थोड़े करवा लिए।
  • यह सफेद बाल उसकी शक्ति का प्रतीक होते हैं क्योंकि अपने कार्यकाल में उसने वह सब सिख लिया जो उसे पूंजी के पैसों का विस्तार के लिए आवश्यक है। 
  • अब चलते हैं एक नये सामान्य व्यक्ति के पास जो अपना पैसा कैसे बचाता है। 
  • भाई मैं अपनी कहता नहीं, और की बुराई में पीछे रहता नहीं।
  • दोस्तों, ऐसे लोगों से आपकी कई बार मुलाकात हुई होगी जो अक्सर दूसरे के अवगुणों को कहते रहते हैं पर खुद ही वो गलतियां करते है।



  • कई कहते हैं मेरा पैकेज इतने लाख/करोड़ का हैं, बड़ा गर्व होता हैं। पर दुःख तब होता है ऐसे लोग जब ज़िम्मेदारियों से भागते हैं। यदि अप्रेजल न लगे तो अपने हक़ के लिए सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर उतर आते हैं और प्राइवेट काम की गति धीमी कर देते हैं क्योंकि हड़ताल पर वे जा सकते नहीं क्योंकि निकाल देने का डर जो है।
  • खैर जो भी है ये लोग अपनी आय बढ़ते हैं काले कोट वाले वकीलों व सीए से मिलने लग जाते हैं और अपने हक़ को इनकम टैक्स से बचाने की जुगात करते हैं। 
  • एक से बढ़कर एक फाइनेंस कम्पनी व टैक्स बचाने वालों से पूरा शहर भरा पड़ा है। बंद कमरे की बाशी हवा देन वाला एसी और देश भर की खबरे देना वाला एचडीटीवी इनको बड़ा विद्वान बना देती है। जब कोई बड़ी तनख्वाह का बकरा इनके पास आता है तो वे उसे वह हर नुस्खा उनके पास होता है जो इनकम टैक्स बचा सके।
  • यही नहीं वरिष्ठ अधिकारी अपने जूनियर को वह सब सीखा देता है जो इनकम टैक्स बचा सके।
  • दोस्तों ये बिचौलिये और टैक्स बचाने वालों को पता नहीं होता है कि उनका क्या दायित्व है? फिर ये कहते है सरकार क्राइम पर कंट्रोल नहीं कर पा रही। साली पुलिस बिकी हुई है सब के सब राजनेता बिके हुए हैं।
  • माना कई अर्थों में सरकार दोषी हो सकती है पर जब इतना बड़ा वर्ग यदि इनकम टैक्स बचाने के लिए इतना कुछ (नई कार, एक बड़ा आलिशान मकान, शेयर मार्केट में पैसा लगाना, बॉन्ड खरीदना, बीमा करवाना और न जाने क्या-क्या, जिससे इनकम टैक्स न देना पड़े) कर सकता है।  
  • जब इतना ऐसी सोच रखता है तो ऐसा देश कभी भी विकास नहीं कर सकता है और यदि विकास दिखता है तो सिर्फ चंद लोगों तक ही। ये लोग पैसे वाले हैं भाई, इनका धर्म-जाति बस पैसों वालों के इर्दगिर्द नजर आता है।
  • जब हमारे समाज को दिशा देने वाले ही इनकम पर टैक्स बचाने की सोचते हैं तो हम इनसे क्या उम्मीद कर सकते हैं। जब सरकार के पास इनकम टैक्स नहीं होगा तो वह किस आधार पर विकास कर पायेगी? 
  • कैसे युवा को रोजगार दे पाएगी?
  • कैसे अपराध कम होगा जब बड़ा अधिकारी वर्ग ही अपराध को जिन्दा कर रहा है?
  • यह वर्ग वहीं से उठा है जहां पर अभाव थे ये आधे किसान पुत्र व शोषित वर्ग से हैं लेकिन इन्हें सामंतशाही व्यवस्था रास आ गई इसलिए वे भी वही कर रहे हैं जो पूर्व में लोगों ने किया। 
  • दोस्तों मेरा ये लेख पसंद आये तो कमेंट जरूर करना और आपके कोई सुझाव हो तो अवश्य लिखना।
  • किसी अधिकारी को बुरा लगे तो मैं उससे माफी चाहता हूं पर क्या करें जो अभावों में जीता है उसे सत्य नजर आता है। ऐसा तो राजतंत्र में होता था आपके सामने तो एक ऐसा भारत है जिसकी इबारत महान शहीदों व देशभक्तों न लिखी थी। क्या उनका भारत ऐसा हो सकता है।
  • जब एक मजदूर सामान्य आय से अपना घर अच्छे से चला सकता है तो आपकी आय तो उनसे कई गुना अधिक है। साथ ही कई सुविधाएं भी हैं।
  • अगर आपको बड़ा बदलाव देखना है तो बड़े व्यक्तियों यानि जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा लाया जा सकता है क्योंकि छोटे लोग उनका ही अनुसरण करते हैं। यह सत्य है...
Rakesh Singh Rajput 



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