जिम्मेदारियों का एहसास गरीबों के बीच रहने से होता है, अलग कॉलोनियों में बसने से नहीं



  • ऐसे तो राजतंत्र में भी पद की शपथ राजपूत शायद नहीं लेते थे। पर किसी राजपूत ने शपथ ली है तो समझो अपने प्राणों पर खेल कर भी किसी के साथ अन्याय न होने देने के उदाहरण हमने खूब पढ़े हैं, पर ये आज के अधिकारी है। बड़े जोर-शोर से पूरी पढ़ाई करके आते हैं पूरे संविधान और इतिहास इन्हें अंगुलियों पर रटा रहता है। 
  • जब अधिकारी बन जाते हैं तो बातें जरूर लोकतंत्र की करेंगे। पर उस कुर्सी के मद में इतने अंधे हो जाते हैं कि वे भी किसी सामंतीशाही से क्या कम रहते हैं। 
  • उनकी तरह ही अपने शौकों के लिए एक अलग बस्ती और आधुनिकता में कहें तो अधिकारी कॉलोनी। 
  • वही गलती अब ये कर रहे हैं, जो राजतंत्र ने अपनाई थी सामान्य लोगों से असुरक्षा का भाव इन अधिकारी वर्ग में पैदा हो गया और अपनी अलग ही कॉलोनी बना कर रहते हैं। 
  • हां, दोस्तों कहने को केवल जनता के सेवक है पर सोचों कि जनता से दूर रहकर कोई कैसे सेवक बन सकता है।
  • शहर में जिस और निगाह घूमते हैं उस और कोई न कोई अधिकारियों की कॉलोनियों मिल जाती है। जैसे इनकम टैक्स कॉलोनी, आईएएस कॉलोनी, आरबीआई कॉलोनी, एसबीआई कॉलोनी, नाबार्ड कॉलोनी, रेलवे कॉलोनी और भी बहुत।
  • बस यहीं से शुरू होता है अधिकारियों का संरक्षण वाद और पनपने लगती है असुरक्षा व कुरीतियां।
  • अपनी बस्ती में अलमस्त ये अधिकारी बातें अधिकारों की करते अवश्य है, पर अपने वेतनमान बढ़ने की या वेतन आयोग की सिफारिशें लागू क्यों नहीं हुई?, बोनस अबकी बार कम क्यों दिया जा रहा है, महंगाई भत्ते में कटौती क्यों की गई?
  • अर्थव्यवस्था के बड़े विशेषज्ञ होते हैं पर इनका गणित अपने निजी हितों के लिए ही उपजते हैं क्योंकि इन्हें पता नहीं शायद और पता भी हो तो अतीत को कौन याद रखता है। वो बेरोज़गार था तब की बातें है। अब तो मैं बड़ा अधिकारी हूं।
  • बस चार दीवारी में ही इनका जीवन गुजरता है और साल दो साल में देश-विदेशी का एक टूर कर आते हैं। फिर वहां की रंगत के बखान करते थकते नहीं है। 
  • विदेशों का क्या सिस्टम यार वहां .....
  • क्यूं न विदेशों जैसा सिस्टम या सुविधाएं हमारे देश में भी हो सकती है पर उसके लिए त्याग और समर्पण का भाव हो। एक दूजे की समस्याओं को समझे।
  • क्या यह सही है कि आप बस अपने ही अधिकारों के बारे में सरकार से मांग करें, और दायित्वों से भागो।
  • हां अच्छी तनख्वाह व सुविधाओं के बाद भी अधिकारी अपने दायित्वों से दूर भागते हैं।
  • हमारे देश में युवा ऊर्जा अधिक है जिसको रोजगार चाहिए, यह तभी संभव है जब हमारे अधिकारी सरकार की योजनाओं को सही तरीके से लागू करे।
  • यदि युवा को रोज़गार नहीं तो वे अपराध की ओर अग्रसर होंगे।
  • इससे पैसे वालों को ही अधिक नुकसान है।
  • दोस्तों, मैं कामना करता हूं कि आप भी बड़े अधिकारी बनो, पर इतना याद रखना अपने बेरोज़गारी के दिन याद रखना।
  • हां यह तय है भ्रष्ट आपको होना पड़ेगा पर मध्यम मार्ग का अनुसरण करना और हाथ जोड़कर कहना भाई इस पैसे से आप लोगों की सेवा करना, ताकि आपकी ज्यादा भलाई होगी। बस आपकी फाइलें सही हो तो मुझे काम से कोई ऐतराज नहीं क्योंकि जीना सभी को है।
  • मेरा किसी अधिकारी से कोई बैर नहीं बस उनसे निवेदन है कि वे वर्तमान के लोकतंत्र में रहते है तो कम से कम एक महीने में एक बार आम जन से रूबर जरूर होवे ताकि उनकी समस्याओं को जमीनी स्तर पर जाना जा सके नहीं तो अखबारों व टीवी से ही आपको खबरे मिलेगी और उन पर ही योजनाएं सोचते रहोगे। सरकार को कोरे कागजों में ही योजनाओं के लाभार्थियों के आंकड़े ही गिनाते रहोगे। पर लोगों पता है क्या चल रहा है। 
अधिकारी वर्ग में असुरक्षा की भावना -
  • जैसे कोई मेरे बेटे-बेटियों या परिवार के किसी सदस्य को किडनैप कर लेगा।
  • मेरे मकान में चोरी हो जाएगी।
  • नहीं अपराधी मेरे परिवार पर जान लेवा हमला कर सकता है।
क्यूं आती है दुर्भावना 
  • जब युवा बेरोज़गार हो तो वह अपने शौकों के लिए कुछ भी कर सकता है।
  • समाज में उच्च-निम्न का भेद तब आता है जब उच्च बौद्धिक वर्ग समाज से काटने लगता है और यह वर्ग अपनी अलग बस्ती बना लेता है। आज का अधिकारी वर्ग आमजन के साथ न रहकर अलग कॉलोनी बनाकर रहता है जो आमजन की समस्याओं से परिचित नहीं हो पाते हैं।

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