समुद्री मार्ग से भारत आने वाली प्रमुख यूरोपीय कंपनियां



समुद्री मार्ग से भारत आने वाली प्रमुख यूरोपीय कंपनियों का क्रम निम्न प्रकार था -
पुर्तगाली, डच, अंग्रेज और फ्रांसीसी।

  • प्राचीनकाल से ही भारत में विदेशियों के प्रवेश के दो रास्ते थे - उत्तर पश्चिमी सीमा का प्रसिद्ध स्थल मार्ग, और समुद्री मार्ग।
  • सर्वप्रथम 1407 ई. में ‘बार्थोलोम्यू डियाज’, उत्तामशा अंतरीप’ (केप ऑफ गुड होप) पहुंचा और उसे ‘तूफानी अंतरीप’ कहा।
  • यूरोपीय शक्तियों में पुर्तगाली कंपनी ने भारत में सबसे पहले प्रवेश किया।
  • भारत के लिए नए समुद्री मार्ग की खोज पुर्तगाली व्यापारी वास्कोडिगामा ने 17 मई 1948 को भारत के पश्चिमी तट पर अवस्थित बंदरगाह कालीकट पहुँच कर की।
  • वास्कोडिगामा का स्वागत कालीकट के तत्कालीन शासक जमोरिन (यह कालीकट के शासक की उपाधि थी) द्वारा किया गया।
  • 9 मार्च, 1500 को एक ओर पुर्तगाली ‘पेड्रो अल्वरेज केब्रल’ जल मार्ग क्षरा लिस्बन से भारत आया।
  • ‘फ्रांसिस्को द अल्मेडा’ को भारत में प्रथम पुर्तगाली वायसराय बनाया गया।
  • भारत में पुर्तगाली शक्ति की वास्तविक नींव डालने वाला ‘अलफांसो डि अल्बुकर्क’ था, जो 1503 ई. में पहली बार एक छोटे पुर्तगाली जहाजी बेड़े का नायक बनकर भारत आया था।
  • नवंबर, 1510 में उसने ‘गोवा’ के अतिसमृद्ध क्षेत्र पर अधिकार कर लिया, जो उस समय बीजापुर सल्तनत के अधीन था।
  • अल्बुकर्क (1509-15) ने स्थायी पुर्तगाली आबादी बसाने की दृष्टि से पुर्तगालियों को भारतीय महिलाओं से विवाह करने के लिए प्रोत्साहित किया।
  • भारत में पुर्तगाली शासन का वास्तविक संस्थापक ‘अल्बुकर्क’ को माना जाता है।
  • थ्ननो द कुन्हा ने 1530 में पुर्तगाली शासन का मुख्य केन्द्र ‘कोचीन’ के स्थान पर ‘गोवा’ को बना दिया।
  • 1571 ई. में पुर्तगाली गवर्नर बनने वाले ‘एंटोनिओ द नोरोन्हा’ के समय मुगल बादशाह अकबर कैम्बे गया था, जहां पुर्तगालियों से उसका पहली बार परिचय हुआ। इसी मुलाकात के बाद 1580 ई. में ‘जेसुइट मिशन’ मुगल दरबार में गया।
  • मुगल शासक शाहजहां के समय उन्होंने हुगली पर से अपना अधिकार खो दिया।
  • 1662 ई. में ब्रिटिश सम्राट ‘चार्ल्स द्वितीय’ द्वारा एक पुर्तगाली राजकुमारी से विवाह करने पर पुर्तगालियों ने दहेज में मुंबई का द्वीप दे दिया।
  • पुर्तगालियों के भारत आगमन से भारत एवं यूरोप के मध्य व्यापार के क्षेत्र में एक नए युग का सूत्रपात हुआ।
  • भारत आने और जाने में हुए यात्रा व्यय के बदले में वास्कोडिगामा ने करीब 60 गुना अधिक धन कमाया। इसके बाद धीरे धीरे पुर्तगालियों ने भारत आना आरम्भ कर दिया।
  • भारत में कालीकट, दमन,दीव एवं हुगली के बंदरगाहों में पुर्तगालियों ने अपनी व्यापारिक कोठियों की स्थापना की। भारत में द्वितीय पुर्तगाली स्थापना अभियान पेड्रो अल्वरेज कैब्राल के नेतृत्व में सन 1500 ई. में छेड़ा गया।
  • कैब्राल ने कालीकट बंदरगाह में एक अरबी जहाज को पकड़कर जमोरिन को उपहारस्वरूप भेट किया। 1502 ई. में वास्कोडिगामा का पुनः भारत में आगमन हुआ।
  • भारत में प्रथम पुर्तगाली फैक्ट्री की स्थापना 1503 ई. में कोचीन में की गई तथा दुतीय फैक्ट्री की स्थापना 1505 ई. में कन्नूर में की गई।
  • इसे भारत में पुर्तगाली शक्ति का वास्तविक संस्थापक माना जाता है ।
  • पुर्तगालियों के पश्चात डच भारत में आये।
  • 1596 ई. में कारनेलिस डि हाऊटमैन (ब्वतदमसपे कम भ्वनजउंद) भारत आने वाला प्रथम डच नागरिक था।
  • 1602 ई. में कई डच (हॉलैण्ड) कंपनियों को मिलाकर ‘डच ईस्ट इंडिया कंपनी’ की स्थापना की।  इस कंपनी ने जल्द ही मसाला द्वीपों पर अधिकार कर लिया।
  • भारत में डचों द्वारा अन्य महत्वपूर्ण फैक्ट्रियां (कोठियां) मछलीपट्टनम् 1605, पुलिकट (1610), सूरत (1616), चिन्सुरा 1653 तथा कोचीन 1763 में स्थापित की।
  • 17वीं शताब्दी में भारत से किये जाने वाले मसाले के व्यापार पर डचों का एकाधिकार हो गया था।
  • डचों का भारत में अंतिम रूप से पतन 1759 ई. में अंग्रेजों एवं डचों के मध्य ‘वेदरा युद्ध’ के बाद हुआ।
  • वेदरा युद्ध में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व क्लाइव ने किया था।


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