खेजड़लीः प्रकृति के प्रति जीवन का बलिदान की कहानी




  • आज हम पर्यावरण के प्रति समर्पित ऐसे सम्प्रदाय व उसके अनुयायियों की स्टोरी शेयर कर रहें हैं, जिन्होंने अपने संस्थापक गुरु के नियमों को कठोरता से अपनाते हुए अपने प्राणों की आहुतियां पेड़ों की रक्षार्थ बलिदान कर दिया।
  • बात तब कि है जब पर्यावरण बचाने के प्रति शायद ही कोई सोचता होगा और न ही तब पर्यावरण संरक्षण के लिए इतनी जागरूकता थी। हमारे राजस्थान में रियासत कालीन समय से ही पेड़ों की रक्षा के लिए लोगों में जागरूकता लाने के लिए विभिन्न धर्म सम्प्रदायों द्वारा होता रहा है। 
  • संत जम्भेश्वर जी ने बिश्नोई सम्प्रदाय की स्थापना कर अपने अनुयायियों को जीवों के रक्षार्थ प्रेरित किया था। यह सम्प्रदाय बिश्नोई इसलिए कहलाया क्योंकि वे जम्भेश्वर जी द्वारा बनाये गए 29 नियमों (बीस + नौ) का पालन करते थे। 
  • जम्भेश्वर जी ने बिश्नोई समाज के लिए प्रकृति के जीवों को बचाने के लिए अधिक जोर दिया। उन्होंने अपने अनुयायियों को पेड़ों व जीवों को बचाने के लिए अपने प्राणोत्सर्ग करने तक के लिए कहा है। जो उनकी वाणी में स्पष्ट देखने को मिलती है -

‘जीव दया पालणी, रूंख लीलो न घावें’
(जीव मात्र के लिए दया का भाव रखें और हरा वृक्ष नहीं काटे।)
बरजत मारे जीव, तहां मर जाइए।
(जीव हत्या रोकने के लिए अनुनय-विनय करने, समझाने-बुझाने के बाद भी यदि सफलता नहीं मिले तो स्वयं आत्म बलिदान कर दें।)

  • बिश्नोई सम्प्रदाय के लोगों ने विश्व इतिहास के सामने एक ऐसा उदाहरण पेश किया है जो आज भी लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए संदेश देता है और यह बताया है कि पेड़ हमारे जीवन में अपने प्राणों से भी ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है।
  • मारवाड़ (जोधपुर) रियासत के महाराजा अभय सिंह ने मेहरानगढ़ किले में भवन बनाने के लिए अपने मंत्री गिरधारी दास भण्डारी को लकडियों की व्यवस्था करने का आदेश दिया। जिसके लिए मंत्री ने खेजड़ली गांव को चुना था। उसके सिपाही जब पेड़ काटने के लिए गांव पहुंचे तो उन्हें वहां बिश्नोई समाज की अमृता देवी नामक महिला के विरोध का सामना करना पड़ा। उसने बिशनेई धर्म के नियमों का हवाला देते हुए पेड़ काटने से रोका लेकिन सिपाही नहीं माने। जब सिपाहियों ने पेड़ काटने की कोशिश की तो अमृता बिश्नोई पेड़ से चिपक गई और कहा कि पहले मेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े होंगे, इसके बाद ही पेड़ कटेगा।
  • राजा के सिपाहियों ने उसे पेड़ से अलग करने की काफी कोशिश की परंतु अमृता टस से मस नहीं हुई। इसके बाद सिपाहियों ने अमृता देवी पर ही कुल्हाड़ी चलाना आरंभ कर दिया। अपनी माता के बलिदान को देखकर उसकी तीन पुत्रियों ने भी पेड़ों की रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुतियां दे दी। इसके बाद पूरे गांव के बिश्नोई समाज ने पेड़ों को काटने से बचाने के लिए चिपको आंदोलन खड़ा कर दिया। पेड़ों को बचाने के लिए एक के बाद एक करके गांव के 363 बिश्नोइयों ने अपने प्राणों की आहुतियां दे दी। इनमें 71 महिलाएं व 292 पुरुष थे।
  • इस घटना की सूचना जब राजा अभय सिंह को मिली तो उन्हें काफी सदमा पहुंचा और उन्होंने वहां आकर बिश्नोई समाज से माफी मांगी। उन्होंने ताम्र पत्र देकर बिश्नोई समाज को आश्वस्त किया की जहां कही भी किसी भी गाव में बिश्नोई निवास करेंगे, वहां पेड़ कभी भी नहीं काटे जायेंगे ।
  • तब से लेकर आज तक भादवा सुदी 10वीं को बलिदान दिवस के रुप में खेजड़ली गांव में बिश्नोई समाज के लोगों का मेला लगता है। इस मेले में बिश्नोई समाज से जुड़े लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं और बलिदानियों को नमन करते हैं।

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