राजस्थान में आर्थिक योजना

  • भारत में 1950 में योजना आयोग की स्थापना के पश्चात 1951 में राज्य स्तर पर समन्वय स्थापित करने के उद्देश्य से ‘राष्ट्रीय विकास परिषद’ की स्थापना की गई। राजस्थान आर्थिक नियोजन का भाग 1 अप्रैल, 1951 को बना।
राजस्थान की पंचवर्षीय योजनाएं -

पहली पंचवर्षीय योजना 

  • अवधि: 1 अप्रैल, 1951 से 31 मार्च, 1956 तक
  • इस योजना में कृषि उत्पादन की क्षमता को बढ़ाने और ग्रामीण जनता के जीवन स्तर को उन्नत करने हेतु सामुदायिक विकास योजना प्रारम्भ की गई।
  • राज्य में प्रथम पंचवर्षीय में कृषि को अधिक प्राथमिकता देते हुए विशेष प्रयास किये गये।
  • इसके अन्तर्गत भाखड़ा नांगल व चम्बल परियोजनाओं पर कार्य प्रारम्भ हुआ।
  • राज्य में प्रथम पंचवर्षीय योजना के लिए प्रस्तावित व्यय 64.5 करोड़ रुपये था किन्तु योजनान्तर्गत केवल 54.14 करोड़ ही खर्च हो सके।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना 

  • अवधि: 1 अप्रैल, 1956 से 31 मार्च, 1961 तक
  • यह योजना पी.सी. महालनोबिस मॉडल पर आधारित थी, जिसमें पूंजी-उत्पादन अनुपात 2ः1 कल्पित किया गया।
  • प्रस्तावित व्यय 105.3 करोड़ था किंतु वास्तविक व्यय 102.7 करोड़ रुपये था।
  • राज्य में इस योजना के फलस्वरूप कृषि, सिंचाई, शक्ति व सामाजिक सेवाओं पर प्रमुख बल दिया गया तथा पंचायती राज, राजस्थान खादी एवं ग्रामोद्योग मण्डल, राजस्थान हथ करघा मण्डल, राजस्थान हस्तकला मण्डल, राजस्थान लघु उद्योग निगम एवं राजस्थान वित्त निगम की स्थापना की गई।
  • भारत में योजना का प्रमुख उद्देश्य तीव्र औद्योगीकरण को प्रोत्साहित कर, मूल एवं भारी उद्योगों की स्थापना था। इस योजना में दुर्गापुर, भिलाई और राउरकेला में तीन लौह इस्पात कारखाने, चितरंजन के रेल ईंजन कारखाने का विस्तार और इण्टीग्रल कोच फैक्ट्री खोली गई।

तृतीय पंचवर्षीय योजना 

  • अवधि: 1 अप्रैल, 1961 से 31 मार्च, 1966
  • राज्य में प्रस्तावित व्यय रु 236 करोड़, वास्तविक व्यय रु 212.70 करोड़ का रहा।
  • योजना का लक्ष्य आत्मनिर्भर एवं स्वयं स्फूर्त अर्थव्यवस्था रखा गया।
  • कृषि विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए कृषि पर जनसंख्या का दबाव कम होकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था का बहुविध विकास संभव हो तथा राज्य के औद्योगिक व खनन विकास तथा सामाजिक सेवा के विकास पर ध्यान दिया गया।
  • इस योजना पर चीन द्वारा 1962 में तथा पाकिस्तान द्वारा 1965 में युद्ध होने से अर्थव्यवस्था पर दुष्प्रभाव पड़ा।
  • इस योजनान्तर्गत राज्य में जिला स्तर पर सघन कृषि विकास कार्यक्रम, तकनीकी शिक्षा में गति एवं नये उद्योगों के विकास से राज्य में आर्थिक वातावरण बना।
  • नोटः-
  • तृतीय पंचवर्षीय योजना व चतुर्थ पंचवर्षीय योजना के मध्य तीन वार्षिक योजनाएं 1966-67, 1967-68 व 1968-69 चलाई गई।
  • 1966 से 1969 तक की अवधि को योजना अवकाश कहा जाता है।

चतुर्थ पंचवर्षीय योजना 

  • अवधि: 1 अप्रैल, 1969 से 31 मार्च, 1974 तक
  • इस योजना की रूपरेखा श्री अशोक मेहता द्वारा तैयार की गई।
  • योजना का लक्ष्य स्थिरता के साथ विकास और आत्मनिर्भरता था।
  • राज्य में प्रस्तावित व्यय रु 306.21 करोड़ जबकि वास्तविक व्यय रु 308.79 करोड़ था।
  • इस योजना में क्षेत्र विकास की अवधारणा पर बल दिया गया तथा राज्य में सूखा संभाव्य क्षेत्र कार्यक्रम प्रारम्भ किए गए।

पांचवी पंचवर्षीय योजना 

  • अवधि: 1 अप्रैल, 1974 से मार्च 1979 तक
  • इस योजना का प्रमुख उद्देश्य गरीबी उन्मूलन और आत्मनिर्भरता रखा गया। सकल घरेलू उत्पाद में 5.5 प्रतिशत की दर से वार्षिक वृद्धि प्राप्त करना, उत्पादक रोजगार के अवसरों में विस्तार तथा सभी उपलब्ध साधनों का समुचित उपयोग।
  • योजना में रु 847.16 करोड़ का प्रावधान जबकि वास्तविक व्यय रु 857.62 का हुआ।
  • राज्य में योजना में विकेन्द्रित नियोजन को प्राथमिकता दी गई तथा न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम चलाया गया।
  • राज्य संरचनात्मक ढांचा विकसित एवं सुदृढ़ करने हेतु सिंचाई व शक्ति पर सर्वाधिक व्यय किया गया।
  • इस योजना में पहली बार राजस्थान में सभी जिलों में जिला उद्योग केन्द्रों की स्थापना की गई।
  • मार्च, 1977 में केन्द्र में सत्ता परिवर्तन होने से पांचवीं योजना को समय से पहले 1978 में समाप्त कर दिया गया।
  • 1978-79, 1979-80 तक
छठी पंचवर्षीय योजना 
  • अवधि: 1 अप्रैल, 1980 से 31 मार्च 1985 तक
  • प्रस्तावित व्यय रु 2025 था जबकि वास्तविक व्यय रु 2120.45 हुआ।
  • इस योजना में तीव्र ग्रामीण विकास के माध्यम से निर्धनता उन्मूलन हेतु एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, स्पेशल कम्पोनेण्ट योजना तथा घूमन्तु जनजातियों के लिए संशोधित क्षेत्रीय विकास दृष्टिकोण अपनाया गया।
  • इस योजना को 1978 में समाप्त कर
  • छठी पंचवर्षीय योजना में अर्थव्यवस्था ने 4 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त करके उसके उसे अवरोधक को पार कर लिया है जिसे प्रोफेसर राजकृष्ण ने हिन्दू वृद्धि दर कहा था।

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