भारत में सकल घरेलू उत्पाद/राष्ट्रीय आय/ प्रतिव्यक्ति आय की धीमी वृद्धि के कारण GDP



भारत में समल घरेलू उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय की वृद्धिदर भारत की क्षमता के अनुकूल नहीं रही। इसके निम्नलिखित कारण है-

1. पूंजी की कमी - 

  • भारत में निवेश करने के लिए पूंजी का अभाव पाया जाता है। लोगों की बचत का स्तर इतना कम है कि वे अर्थव्यवस्था में निवेश करने की स्थिति में नहीं है। 
  • विदेशी पूंजी के माध्यम से भी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाया जा सकता है, लेकिन भ्रष्टाचार तथा नियम-कानून की जटिलता के परिणामस्वरूप भारत में पर्याप्त रूप में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश उस मात्रा में नहीं हो पाता जिस मात्रा में होना चाहिए। 
  • अतः सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के लिए पूंजी निवेश एक आवश्यक शर्त है, भले ही वह देशी हो या विदेशी ।

2. तकनीकी पिछड़ापन - 

  • भारत में पूंजी की कमी होने के कारण कृषि तथा औद्योगिक क्षेत्र में तकनीकी पिछड़ापन पाया जाता है। शोध एवं अनुसंधान में भारत अपने GDP का मात्र .75 प्रतिशत खर्च करता है जबकि चीन 5 प्रतिशत से अधिक तथा अमेरिका 7 प्रतिशत से अधिक निवेश करता है। 
  • भारत को तकनीक के क्षेत्र में आगे बढ़ना है तो GDP का कम-से-कम 2 प्रतिशत निवेश करना होगा।
3. कृषि पर अत्यधिक निर्भरता - 
  • भारत में जनसंख्या का लगभग 55 प्रतिशत कृषि पर निर्भर है जबकि GDP में इसका केवल 13.8 प्रतिशत ही है। 
  • कृषि क्षेत्र में संलग्न लोगों की क्रय-शक्ति क्षमता पर भी अत्यधिक कम होती है। अतः उद्योग तथा सेवा क्षेत्र भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
4. जनसंख्या की तीव्र वृद्धि अथवा जनसंख्या का अधिक होना- 
  • भारत में अत्यधिक तेजी से जनसंख्या वृद्धि हो रही है। जहां वर्ष 1951 की जनगणना में 36.1 करोड़ थी वही वर्ष 2011 की जनगणना में यह बढ़कर 121 करोड़ हो गई। 
  • इस तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण उत्पादन का अधिकांश भाग इनके भरण-पोषण पर ही खर्च हो जाता है तथा निवेश के लिए पर्याप्त पूंजी नहीं बचती है।

5. औद्योगिक क्षेत्र का पिछड़ापन - 

  • भारत में औद्योगिक विकास आवश्यकतानुसार नहीं हो पाया। भारी तथा आधारभूत उद्योग जैसे - इस्पात, विद्युत, उर्वरक, सीमेंट आदि ठीक प्रकार से विकसित नहीं हुए। 
  • 1991 तक सार्वजनिक क्षेत्र का अधिकांश उद्योगों पर नियंत्रण था। फिर इनका निष्पादन भी संतोषजनक नहीं था। 
  • वर्तमान समय में उदारीकरण के परिणामस्वरूप औद्योगिक विकास को गति तो मिली लेकिन पिछले 50 वर्षों का पिछड़ापन इन पर आज भी हावी है। 
  • जननांकिय लााभांश के तहत युवावर्ग की संख्या तो अधिक है लेकिन कुशल श्रमिकों का आज भी अभाव पाया जाता है, फिर समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार भी औद्योगिक पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण है।

6. आय व सम्पत्ति का असमान वितरण - 

  • भारत में आय और सम्पत्ति का असमान वितरण पाया जाता है। जनसंख्या के एक छोटे हिस्से के पास संसाधनों का एक बड़ा हिस्स है इसके परिणामस्वरूप लोगों के पास उनकी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए ही पर्याप्त संसाधन नहीं है तो उनसे निवेश की उम्मीद नहीं की जा सकती।

7. आधारभूत संरचना का अपर्याप्त विकास- 

  • भारत में भौतिक तथा सामाजिक दोनों प्रकार की आधारभूत संरचना के अन्तर्गत परिवहन, संचार, विद्युत, लोहा तथा कोयला की उपलब्धता में अनियमितता देखी जाती है। 
  • जैसाकि हम जानते है कि भौतिक आधारित संरचना GDP तथा राष्ट्रीय आय को प्रत्यक्ष रूप में प्रभावित करती है। अतः राष्ट्रीय आय की वृद्धि के लिए इनमें सुधार आवश्यक है। 
  • सामाजिक आधारभूत संरचना के अंतर्गत शिक्षा, चिकित्सा, स्वच्छ पेयजल, पौष्टिक आहार आदि को सम्मिलित किया जाता है। 
  • भारत में शिक्षा का विकास गुणवत्ता की दृष्टि से विकसित देशों की तुलना में निम्नस्तर का हुआ है। 
  • वर्तमान में भी चिकित्सा तक लोगों की पहुंच नहीं हुई है। 
  • अच्छे पौष्टिक आहार के अभाव में भारत में लगभग 45 प्रतिशत बच्चे कुपोषित है जबकि 22 प्रतिशत लोग गरीबी की श्रेणी में आते हैं लेकिन वास्तविक आंकड़े इससे अधिक ही है। अतः ये सब देश की राष्ट्रीय आय को नकारात्मक रूप में प्रभावित करते है।
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National Income/ GDP


8. कुशल श्रमिकों का अभाव - 

  • भारत में कुशल श्रमिकों का अभाव पाया जाता है। निजी क्षेत्रों की यह शिकायत रहती है कि स्नातक स्तर का व्यक्ति भी स्वयं को सही तरीके से पेश नहीं कर सकता। इसके अतिरिक्त भारत में व्यावसायिक शिक्षा का अभाव पाया जाता है। कुछ उच्चस्तरीय शिक्षण संस्थान जैसे - आईआईटी, एनआईटी तथा एम्स को छोड़ दिया जाय तो अन्य शिक्षण संस्थानों की व्यावसायिक शिक्षा गुणवत्ता के मामले में निम्नस्तरीय है। फिर औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान भी संख्या में तो अधिक है, लेकिन यहां भी गुणवत्ता का अभाव पाया जाता है।

9. वित्तीय संस्थाओं का अभाव एवं इनमें व्याप्त भ्रष्टाचार - 

  • भारत में पर्याप्त संख्या में वित्तीय संस्थाएं नहीं है, विशेषकर निजी क्षेत्र में तो वित्तीय संस्थाओं की संख्या अत्यधिक कम है। जो वित्तीय संस्थाएं वित्त उपलब्ध करवाने की स्थिति में होती है। उनमें भ्रष्टाचार पाया जाता है। अतः नये उद्यमी को सही प्रोत्साहन नहीं मिल पाता है। जिसका नकारात्मक प्रभाव सकल घरेलू उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय पर पड़ता है।
10. रूढ़िवादिता एवं भाग्यवादिता का पाया जाना - 
  • भारत में रूढ़िवादिता पाया जाना नये विचारों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौति है इसके परिणामस्वरूप भारतीय नवाचार को सामान्यतः सकारात्मक रूप में न लेकर नकारात्मक रूप में लेते है। 
  • भाग्यवादिता के परिणामस्वरूप नये उद्योग स्थापित करने में भारतीय में साहस नहीं देखा जाता है। साथ ही सफलता व असफलता को भाग्य से जोड़ा जाना भी राष्ट्रीय आय पे नकारात्मक रूप में प्रभावित करता है।
  • अतः सकल घरेलू उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय में वृद्धि करने के लिए उपर्युक्त समस्याओं के समाधान का प्रयास करना होगा।


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