भारत में कारखाना अधिनियम

भारत में कारखाना अधिनियम 


1881 का कारखाना अधिनियमः-


  • गवर्नर जनरल- लॉर्ड रिपन
  • इस अधिनियम का उद्देश्य अल्पायु श्रमिकों को संरक्षण एवं उनके लिए स्वास्थ्य सुरक्षा की व्यवस्था करना था।

मुख्य प्रावधान-

  • उन कारखानों पर लागू, जहां श्रमिकों की संख्या कम से कम 100 थी।
  • 7 वर्ष से कम आयु के बच्चों के काम करने पर निषेध।
  • 7 से 12 वर्ष के बच्चों के काम करने की अवधि 9 घंटे निर्धारित।
  • साथ ही प्रतिदिन 1 घंटे का आराम एवं महीने में 4 दिन की छुट्टी।
1891 का कारखान अधिनियम
  • गवर्नर जनरलः लॉर्ड लैन्सडाउन
  • उद्देश्य - वयस्क श्रमिकों के हितार्थ
  • मुख्य प्रावधान - 
  • उन कारखानों पर लागू, जहां श्रमिकों की संख्या कम से कम 50 थी।
  • 9 वर्ष से कम आयु के बच्चों के कारखानों में कार्य करने पर पूर्ण निषेध।
  • 9 से 19 वर्ष के बच्चों के काम करने की अवधि 7 घंटे निर्धारित।
  • औरतों को रात्रि में 8 बजे से लेकर 5 बजे सुबह तक कार्य करने पर निषेध तथा इनके काम करने की अवधि 11 घंटे प्रतिदिन निश्चित की।
  • सप्ताह में एक दिन अवकाश की व्यवस्था।

1911 का कारखान अधिनियम


  • गवर्नर जनरलः लॉर्ड हार्डिंग
  • उद्देश्य - वयस्क श्रमिकों के हितार्थ।

मुख्य प्रावधान - 

  • यह अधिनियम 1891 के कारखाना अधि. का ही संशोधित रूप था।
  • पुरुषों के कार्य करने की अवधि 12 घंटे प्रतिदिन निश्चित।
  • अल्पायु बच्चों के 7 बजे शाम से लेकर 5 बजे सुबह तक काम करने पर रोक।



1922 का कारखाना अधिनियम

  • गवर्नर जनरलः लॉर्ड रीडिंग
  • उद्देश्य - श्रमिकों के हितार्थ।
  • मुख्य प्रावधान -
  • यह अधिनियम उन कारखानों पर लागू, जहां श्रमिकों की संख्या 20 से अधिक हो, या बिजली का प्रयोग होता था।
  • करखानों में कार्य करने वाले बच्चों की आयु 12 से 15 वर्ष के बीच निश्चित। साथ ही कार्य करने की अवधि 6 घंटे प्रतिदिन निर्धारित।
  • यह अधिनियम 1920, 1926, 1931 में आंशिक रूप से संशोधित।

1934 का कारखाना अधिनियम


  • गवर्नर जनरलः लॉर्ड विलिंगटन
  • उद्देश्य - श्रमिकों के हितार्थ।
  • मुख्य प्रावधान -
  • प्रथम बार मौसमी कारखाने एवं सदैव कार्यरत कारखाने में अंतर स्थापित किया गया।
  • वयस्क श्रमिकों के काम के घंटो को 11 घंटे प्रतिदिन निश्चित किया गया।
  • अल्पायु बच्चों के कार्य के अवधि 5 घंटे प्रतिदिन निश्चित।
  • नियमित रूप से कार्य करने वाले उद्योगों या कारखानों में वयस्क श्रमिकों के दैनिक कार्य की अवधि 10 घंटे प्रतिदिन निश्चित।
  • श्रमिकों के आराम एवं चिकित्सा की भी व्यवस्था की गई।



1946 का संशोधन  अधिनियम


  • गवर्नर जनरलः लॉर्ड वेवेल
  • उद्देश्य - वयस्क श्रमिकों के हितार्थ
  • मुख्य प्रावधान -
  • श्रमिकों के कार्य करने की अवधि 9 घंटे निर्धारित की।
  • मौसमी कारखानों में कार्य करने की अवधि 10 घंटे निश्चित।
  • 200 से अधिक श्रमिकों के कार्य करने वाले कारखानों में कैंटीनों की व्यवस्था।
  • नोटः- स्वतंत्र भारत का पहला विस्तृत कारखाना अधिनियम 1948 ई. में लाया गया।


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