जुलियस सीजर

 जुलियस सीजर

  • 44 ई.पू. में उसे रोम की सीनेट ने स्थायी डिक्टेटर नियुक्त किया। उसे सेंसर, कॉन्सल और ट्रिब्यून के सम्मिलित अधिकार दिए गए।
  • उसने रोम की सैािनक शक्ति एवं साम्राज्य का व्यापक विस्तार किया।
  • उसने स्पेन और फ्रांस पर अपना आधिपत्य स्थापित किया। उसने दो बार इंगलैण्ड पर भी आक्रमण किया तथापि वह इस पर पूर्ण विजय प्राप्त नही कर सका।
  • स्पेन से इंगलिश चैनल तथा राइन नदी तक के समस्त इलाकों पर विजय प्राप्त कर ली।
  • सिकंदरिया में हुए विद्रोह को उसने कुचल दिया तथा अफ्रीका में पांपे के समर्थकों को पराजित किया।
  • सीजर ने मिस्र की रानी किलयोपेट्रा से अपने व्यक्तिगत संबंध स्थापित किए। अपने विजयों के संदर्भ में वह कहता था- 'मैं आया, मैंने देखा और मैंने विजय प्राप्त कर ली।'
  • उसे रोम का राजमुकुट भी सौंपा गया, परंतु जनभावना को देखते हुए उसने सम्राट का पद स्वीकार नही किया यद्यपि वह रोम का बेताज बादशाह बन गया।
  • सीनेट के गठन में परिवर्तन कर इसमें विदेशियों को भी स्थान दिया। प्रांतीय गवर्नरों पर केंद्र का अधिक प्रभावशाली नियंत्रण स्थापित किया गया।
  • कर वसूलने की प्रणाली में सुधार किए गए तथा गरीबों को जमींदारों के शोषण से मुक्ति दिलाई गई। सैनिकों का वेतन निश्चित किया गया।
  • वाणिज्य-व्यापार एवं कृषि को प्रोत्साहन, व्यापार के विकास के लिए सोने के सिक्के जारी किए गए।
  • जुलियस सीजर ने जुलियन कैलेंडर चलाया। इसने जुलाई महीने का नामकरण सीजर ने अपने नाम के ऊपर किया।
  • रोमन सिक्कों पर उसकी मूर्तियां उत्कीर्ण की गई उसकी प्रतिमा राजाओं की प्रतिमाओं के साथ रखी।

जनतंत्र से राजतंत्र

  • एक ड़यंत्र के अंतर्गत 15 मार्च 44 ई.पू. को सीजर की हत्या फोरम ‘सीनेट‘ की सीढ़ियों से उतरते समय कर दी गई। इस षड़यंत्र में भाग लेने वाले प्रमुख व्यक्ति थे, पांपे के अनुयायी कैसियस और ब्रूटस।
  • विख्यात अंग्रेजी उपन्यासकार विलियम शेक्सपीयर ने अपने नाटक जुलियस सीजर में सीजर की हत्या के षड़यंत्र और उसकी हत्या का वर्णन है।
  • सीजर के भतीजे ऑक्टेवियस ऑगस्टस 27 ई.पू.-14 ई. ने रोम की सत्ता पर अपना अधिकार कर लिया।
  • प्रजातंत्र की समाप्ति, राजतंत्र का प्रारंभ हुआ। ऑक्टेवियस ने 'आगस्टस' की उपाधि धारण की वह रोम का प्रथम सम्राट बना और ऑगस्टस सीजर के रूप में विख्यात हुआ।
  • वह अपने-आपको ‘प्रिसेप्स‘ अर्थात् राज्य का प्रथम नागरिक मानता था। उसके शासनकाल में रोम का सर्वांगीण विकास हुआ। उसके शासनकाल को रोमन इतिहास का 'स्वर्णयुग' माना जाता है।
  • ऑक्टेवियस ने सीनेट के गठन में परिवर्तन किया। उसने ऐसी नीति और परिपाटी का अवलंबन किया जिससे प्रजा श्रेणीबद्ध हो गई।
  • वह रोमन जाति की शुद्धता और रक्त-रक्षा का समर्थक था। उसने पुरानी धार्मिक संस्थाओं, वेशभूषा तथा रहन-सहन को पुनर्स्थापित करने का प्रयास किया।
  • उसने बडी संख्या में चांदी के सिक्के ढलवाए। उसका शासनकाल शांति की स्थापना, जो अनवरत आंतरिक संघर्षो एवं सैनिक विजयों के बाद प्राप्त हुई थी, के लिए विख्यात हैं।
  • साहित्य और कला के क्षेत्र में विकास हुआ।
  • सीजर Caesar शब्द सम्राट का पर्यायवाची बना।
  • दत्तक पुत्र टिबेरियस 14-37 ई. उत्तराधिकारी टिबेरियस की मृत्यु के साथ ही रोमन साम्राज्य अवनति के मार्ग पर अग्रसर हुआ।
  • रोमन सम्राट नीरो के समय में आर्थिक स्थिति भी कमजोर पड गई। गॉल में विद्रोह हो गया। इस स्थिति में सीनेट नो उसे पदच्युत कर, मार डालने की निर्णय लिया, लेकिन 68 ई. में स्वयं आत्महत्या कर ली।
  • नीरों के विषय में कहा जाता है कि 'जब रोम जल रहा था वह चैन की वंशी बजा रहा था।'
  • 69 ई. में भयंकर गृहयुद्ध हुआ। इसमें विजयी होकर सीरिया के सेनापति फ्लोविअस वेस्पेसियन सम्राट बना।
  • उसके समय में पेलेस्टाइन के यहूदियों से घोर युद्ध हुआ तथा जेरूसलम का विख्यात नगर नष्ट कर दिया गया।
  • वेस्पेसियन के बाद क्र्रमशः डोमीशियन, नर्वा ट्राजन, हेडिृयन, एण्टोनियस, मार्क्स ऑरनियस, सम्राट बने।
  • ट्राजन 113-117 ई. ने रोमनों में रणप्रियता और विजय कामना को उत्तेजित करने का प्रयास किया। वह फुरात नदी के रिास्ते पार्थिया की राजधानी टेसीफून और वहां से आगे फारस की खाडी के सिरे पर पहुंच गया।
  • इतिहासकार कैसियस डियों के अनुसार, सिकंदर के जैसा वह भी भारत विजय की कामना करता था परंतु वह ऐसा कर नही पाया।
  • ऑरलियस के समय में पार्थियनों का आक्रमण हुआ।
  • 225 ई. में ईरान में ससानी राजवंश का उदय हुआ।
  • तीन भाषाओं में खुदे एक अभिलेख में ससानी राजा शापुर प्रथम दावा करता है कि उसने 60 हजार रोमन सेना को समाप्त कर दिया तथा रोमन साम्राज्य की पूर्वी राजधानी एंटिओक पर अधिकार कर लिया है।

डायोक्लीशियन 284-305 ई.

  • प्रशासनिक सुधार किए।
  • आर्थिक दशा सुधारने के लिए व्यापार को बढावा दिया। नये सिक्के जारी किए। उसने ईसाई धर्म का दमन भी किया। साम्राज्य का अधिकतम विस्तार किया।
  • सैनिक और नागरिक विभाग पृथक कर दिए गए। सेनापतियों को अधिक स्वायत्तता प्रदान की जिससे ये अधिक शक्तिशाली हो गए।           

कॉन्सटैनटाइन 312-337 ई.

  • सैन्य व्यवस्था को मजबूत कर सीमा की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था की गई। धनिकों पर अतिरिक्त कर लगाए गए।
  • उसने सोने का ‘सॉलिडस‘ सिक्के बड़ी संख्या में ढलवाया। 4.5 ग्राम शुद्ध सोने का।
  • मौद्रिक स्थायीत्व और जनसंख्या में वृद्धि के कारण आर्थिक विकास में तेजी आई।
  • तेल पेरने की मशीनों, शीशे के कारखानो, पानी की मिलों एवं व्यापार के विकास में पर्याप्त पूंजी निवेश किया।
  • मिस्र से प्राप्त पैपाइरस पर लिखे दस्तावेजों से ज्ञात होता है कि तत्कालीन समाज सुखी एवं सम्पन्न था। मुद्रा प्रथा का व्यापक प्रचलन था।
  • बाइजेनटाइन ‘तुर्की’ के निकट कुस्तुनतुनिया, जो आधुनिक काल में इस्ताुबुल के नाम से जाना जाता है, के नए नगर का निर्माण करवा कर वहां नई राजधानी की स्थापना करना।
  • उससे फारस तथा उत्तरी और पूर्वी बर्बरों की गतिविधियों पर अधिक प्रभावशाली नजर रखी जा सकती थी।
  • बाइजेंनटाइना साम्राज्य पूर्वी और पश्चिमी भाग को जोडनेवाले प्रमुख व्यापारिक मार्ग पर स्थित था।
  • ईसाई धर्म को प्रश्रय दिया। सम्राट बनने के बाद उसने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया।
  • 313 ई. के मिलान एडिक्ट द्वारा उसने ईसाई धर्म को राजधर्म बना दिया। रोमन साम्राज्य के ईसाईकरण की प्रक्रिया आरंभ हो गई और रोमन ईसाई धर्म का केंद्र बन गया।

रोम का पतन

  • चौथी शताब्दी के उत्तरार्द्ध से।
  • कान्सटेण्टियस, जुलियन और थियोडोसियस के समय में हूणों, फ्रेंकों, गोथो के आक्रमण हुए।
  • थियोडोसियस एकीकृत रेामन साम्राज्य का अंतिम सम्राट था।
  • उसने साम्राज्य को दो भागों- 'पश्चिमी राजधानी रोम और पूर्वी बाइजेंन्टाइान'  में विभक्त कर दिया।
  • 410 ई. में विजी गोथों ने रोम पर विजय प्राप्त कर नगर को लूट लिया। रोम की शक्ति, प्रतिष्ठा नष्ट कर दी।
  • 5 वीं- 6 वीं तक पश्चिमी रोम साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया।
  • जर्मन मूल के लोगों ‘ गोथ, वैंडल, लोंगार्ड ‘ ने रोम साम्राज्य के विभिन्न भागों पर अधिकार कर अपने-अपने राज्य स्थापित कर लिया। ये राज्य रोमोत्तर कहलाते है।
  • रोमोत्तर राज्यों में प्रमुख राज्य थे- स्पेन में विसिगोथों का राज्य, गॉल में फ्रेंको का और इटली में लोबार्डी का राज्य।
  • 532 ई. में जस्टीनियन ने वैंडलों से अफ्रीका और आस्ट्रोगोलों से इटली छीनकर अधिकार कर लिया।
  • अरबों ने स्पेन, ससानी और पूर्वी रोमन साम्राज्य ‘बाइजेंटियम‘ पर अधिकार कर लिया।

रोमन साम्राज्य के पतन के कारण

  • साम्राज्य की विशालता और इसकी प्रशासनिक व्यवस्था इसके पतन का मुख्य कारण बनी।
  • वर्ग संघर्ष ने सामाजिक एकता को नष्ट कर दिया ‘सामाजिक संरचना‘
  • दुर्बल आर्थिक स्थिति- सोना रोम से बाहर जाने लगा।
  • ईसाई धर्म का उदय और विकास- एक और ईसाई धर्म प्रेम और जनकल्याण की बात करता था तो रोमन धर्म में मूर्ति एवं सम्राट पूजा की प्रधानता ।

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